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Poem (52) Geet (1)

Thursday 21 December 2017

नक़ाब

"आज विद्दालय में होने वाली वाद-विवाद प्रतियोगिता तो मैं ही जीतूँगी।" रीना ने रौब से कहा...

"मैं भी हारने के लिए नहीं बोलूँगी, जीत कर ही रहूँगी।" लीना के उत्तर में दृढ़ता थी।

सातवीं में पढ़ने वाली जुड़वा बहने थीं दोनों। पढ़ाई हो या कला का कोई भी क्षेत्र, दोनों ही पारंगत और प्रतिद्वंदिता से भरपूर। हार-जीत का निर्णय दोनों के बीच ही होता था और जीत सदा लीना की ही होती थी। वाद-विवाद प्रतियोगिता की समाप्ति पर लीना की एक और विजय ने रीना को झकझोर कर रख दिया था...इस हार के बाद लीना उसके लिए महज एक प्रतिद्वंदी रह गई थी।

समय बीता...विद्दालय से कॉलेज और फिर एमबीए की पढ़ाई। यहाँ दोनों की मुलाकात रवि से हुई जो सुंदर, होशियार होने के साथ-साथ शहर के स्थापित उद्दोगपति का बेटा भी था। रवि कुछ मुलाकातों में ही लीना के करीब आ गया और उनकी दोस्ती गहरे प्यार में तब्दील हो गई।

रीना भी रवि को चाहती थी लेकिन रवि की चाहत लीना थी। इस उपेक्षा से रीना के पुराने ज़ख्म फिर से हरे हो गए थे और वो अंदर से छटपटा रही थी। फिर एक दिन कॉलेज की तरफ से पिकनिक की घोषणा हुई जिसमें दो दिन व एक रात शहर से बाहर बिताने का कार्यक्रम था। लीना और रवि बहुत उत्साहित थे। संयोगवश रीना-लीना के माता-पिता को भी पिकनिक से एक दिन पहले ही तीन दिन के लिए शहर से बाहर जाना था। हालाँकि उन्होंने दोनों बेटियों को जाने की अनुमति दे दी थी।

माता-पिता के जाने के अगले दिन जब पिकनिक के लिए निकलना था तो रीना ने खराब तबियत का बहाना बनाकर जाने से मना कर दिया। लीना हैरत में थी लेकिन रवि के साथ होने से उत्साहित थी। उसने फोन पर रवि को रीना के ना आ पाने की ख़बर दे दी थी।

पिकनिक पर जाते हुए लीना ने रीना को सावधानी से रहने को कहा क्योंकि घर में कोई नहीं था। रवि और लीना पिकनिक के लिए सुबह निकल गए थे और रीना घर में अकेली रह गई थी। चार घंटे के बस के सफर में दोनों एक दूसरे के साथ ही रहे।

"साथ बिताए ये पल मुझे हमेशा याद रहेंगे रवि।" लीना ने कहा।

"मैं भी नहीं भूलूँगा।" रवि बोला।

पिकनिक स्थल पर पहुँचने के बाद संचालक ने सबका ध्यान अपनी ओर आकर्षित करते हुए कहा,

"साथियों, जैसा कि इस आप जानते हैं आज रात की पार्टी की थीम है 'नक़ाब' जो आप सब के चेहरों पर होगा। आप सबको डांस के लिए नक़ाब के साथ ड्रा द्वारा अपना-अपना साथी चुनना होगा। सब लोग जोड़ी बनाकर डांस करेंगे। आकर्षक वेश-भूषा के साथ बेहतरीन डांस के लिए तीन सर्वश्रेष्ठ जोड़े चुने जाएंगे"। 

इस घोषणा के बाद सब लोग आराम करने अपने-अपने कमरों में चले गए।

रात की थीम पार्टी शुरू होने वाली थी। लीना और रवि अपने-अपने दोस्तों के साथ तैयार होकर पहुँच गए थे। लीना बहुत सुंदर लग रही थी लेकिन नक़ाब की वजह से एक-दूसरे को पहचानना मुश्किल था। ड्रा निकलने शुरु हो गए थे और कौन किसका साथी है, किसी को पता नहीं था। ड्रा खत्म होने के बाद पंद्रह जोड़े डांस फ्लोर पर थे।

पार्टी शुरू हो चुकी थी और डांस भी। सब लोग नक़ाब लगे अपने जोड़ीदार के साथ डांस का मज़ा ले रहे थे। कोई नहीं जान पा रहा था कि वो किसके साथ डांस कर रहा है। दो घंटे की मौज-मस्ती के बाद संचालक ने माईक हाथ में लेकर कहा,

"आशा करता हूँ आज की ये थीम पार्टी आप सबको पसंद आई होगी। हम लोग अपने नतीजों के साथ तैयार हैं। तीसरे स्थान के जोड़े से शुरू करते हुए हम आखिरी में पहले जोड़े का नाम पुकारेंगे। जिस भी जोड़े का नाम लिया जाएगा, वे यहाँ आकर अपना-अपना नक़ाब हटाएंगे"।

संचालक ने जब तीसरे जोड़े को पुकार कर नक़ाब हटाने को कहा तो जोड़ीदार एक-दूसरे को देखकर हैरान रह गए। यही प्रतिक्रिया दूसरे जोड़े की भी रही। जब विजेता जोड़ी घोषित हुई और नक़ाब हटा, तो लीना और रवि की खुशी का ठिकाना ना रहा खुद को एक-दूसरे के सामने देखकर।

लीना बेहद ख़ूबसूरत लग रही थी। रवि उसे अपनी बाँहों में जकड़ लेना चाहता था लेकिन पार्टी अभी ख़त्म नहीं हुई थी। रवि ने अपने कमरे में उसके साथ ठहरे दोस्त देब से कान में कुछ कहा और लीना के साथ पार्टी ख़त्म होने का इंतज़ार करने लगा।

"लीना तुम और कितनी देर तक रूकोगी यहाँ। मुझे बहुत नींद आ रही है।" लीना के साथ कमरा साझा करने वाली दीपा ने कहा।

रवि ने लीना का हाथ दबाया तो लीना बोली, "दीपा तुम चलो, मैं थोड़ी देर में आती हूँ। चाबी है मेरे पास।"

सबके चले जाने के बाद रवि-लीना कुछ देर वहीं बैठे रहे और फिर उठकर रवि के कमरे की ओर चल दिए। कमरे के सामने पहुँचकर रवि ने ताला खोला और कहा,

"थोड़ी देर और बैठो मेरे पास, फिर चली जाना।"

"लेकिन देब है ना तुम्हारे साथ कमरे में, फिर मैं कैसे..?"

"देब जल्दी नहीं आने वाला। वो और दूसरे दोस्त रमेश के कमरे में तीन पत्ती खेलेंगे।" रवि ने कहा

लीना अंदर आ गई थी और रवि ने दरवाज़े की कुंडी लगा दी थी।

"ये क्या कर रहे हो रवि..।कुंडी क्यों लगा रहे हो ?" लीना ने सवाल किया। जवाब में रवि ने उसे अपनी बाँहों में भरकर उसके गाल पर एक चुंबन दर्ज कर दिया था।

"शादी के पहले ये सब ठीक नहीं है, छोड़ो मुझे।" लीना ने शरमाते हुए कहा।

"जब हमारा प्यार सच्चा है तो फिर ये दूरी क्यों? वैसे भी अगले साल एमबीए खत्म होने के बाद मैं पापा का बिज़नस संभाल लूँगा और फिर तुमसे शादी।" ये कहते हुए रवि ने दूसरे गाल पर भी अपने होंठ रख दिए थे।

"लेकिन इसका मतलब ये नहीं की हम अपनी मर्यादा भूल जाएँ।" लीना ने कहा

"ऐसी बात है तो मैं दरवाजा खोल देता हूँ, तुम चाहो तो जा सकती हो।" रवि ने उदास स्वर में कहा

"अरे, तुम तो बुरा मान गए...इतना अच्छा माहौल है, क्यों अपना मूड खराब कर रहे हो। मैं कहीं नहीं जा रही...तुम्हारी हूँ, तुम्हारी ही रहूँगी।"

ये कहते हुए लीना ने अपनी बाँहों का हार रवि के गले में डाल दिया था। उसके बाद उन दोनों के बीच वो सब हो गया जो दो जवाँ दिलों के बेहद करीब आने पर होता है।

रात गहराते हुए सुबह से मिलने की राह देख रही थी। रवि-लीना एक दूसरे की बाँहों में बेसुध सो रहे थे। सुबह जब रवि की आँख खुली तो लीना को कमरे में ना पाकर वो हैरत में नहीं था। उसने सोचा कि वो लाज के डर से समय रहते अपने कमरे में चली गई होगी। नाश्ते के बाद बस की रवानगी थी। सभी लोग धीरे-धीरे बस में बैठने लगे थी। रवि भी बस में पहुंच कर लीना की राह देख रहा था। कुछ देर बाद जब दीपा को अकेले आते देखा तो बोला,

"लीना किधर है?"

दीपा ने कहा, "उसे एक जरुरी काम याद आ गया था, इसलिए वो सुबह-सुबह ही टैक्सी करके वापिस चली गई।"

ये सुनकर रवि भौंच्चका रह गया था। कुछ ही समय में बस वापसी के सफर को निकल पड़ी थी और रवि पूरे रास्ते सोच में गुम था। मंज़िल पर पहुंच कर सब लोग अपने-अपने घर के लिए चल दिए थे।

अगले दिन कॉलेज में रवि ने लीना को देखा तो बात करनी चाही लेकिन लीना ने रूख नहीं मिलाया। दो क्लास के बाद जब फ्री पीरियड आया तो लीना क्लास से निकल गई और उसके पीछे रवि भी। जब लीना कैंटीन की तरफ बढ़ रही थी तो रवि ने पीछे से जाकर उसका हाथ पकड़ लिया और उसे ऑडिटोरियम की तरफ ले जाने लगा। लीना ने अपना हाथ छुड़ाने की बहुत कोशिश की लेकिन असफल रही। ऑडिटोरियम में कोई नहीं था।

"क्यों लाए हो यहाँ...जाने दो मुझे।" लीना के स्वर में आक्रोश था। "आखिर हुआ क्या है? पिकनिक से भी बिना बताए लौट आई।" रवि भी उत्तेजित होकर बोला।

रवि का इतना कहना था कि लीना फफक-फफक कर रोने लगी। उसका रोना सुनकर रवि सकते में आ गया और उसे चुप कराते हुए बोला, "कुछ तो बोलो !"

"यह क्या बोलेगी, मैं बताती हूँ।" आवाज सुनकर रवि ने पलटकर देखा तो रीना खड़ी मंद-मंद मुस्कुरा रही थी।

"तुम यहाँ कैसे रीना? और क्या बताना चाहती हो?" रवि ने सवाल दागा।

"मैं तो बस यह बताने आई थी कि जब लीना पिकनिक गई ही नहीं तो बोलेगी क्या?" यह सुनकर रवि के पैरों के नीचे से ज़मीन सरक गई थी।

"होश में तो हो रीना? ये क्या बकवास कर रही हो?" रवि बोला।

"जानते हो रवि...बचपन से ही लीना मुझसे जीतती आई है...और मेरी हर प्यारी चीज मुझसे छीनती आई है। लेकिन आज मैंने लीना से वो छीन लिया जिसकी कसक उसे ज़िंदगी भर रहेगी...और वो हो तुम ! मैं भी तुम्हें बेहद चाहती हूँ लेकिन तुमने हमेशा लीना को चाहा। तुम्हारे साथ समय गुजारने और तुम्हारी होने का मौका मुझे पिकनिक में नज़र आया इसलिए निकलने से ठीक पहले मैंने घर के तहखाने में लीना को कै़द कर दिया था। उसके बाद तुम्हारे संग बिताया एक-एक पल मैंने एक उम्र की तरह जिया। तुम्हारे साथ उस रात हमबिस्तर होकर मैंने वो भी पा लिया जिस पर लीना का हक़ था।"

"मेरी बहन होकर भी तुमने मेरी खुशियाँ लूट लीं रीना...क्यों?" लीना के स्वर में आक्रोश था।

"यह तुम मुझसे पूछ रही हो ! कभी सोचा तुमने की मुझ पर क्या गुजरती होगी जब-जब मैं तुमसे हारी...बचपन से लेकर बड़े होने तक।" अब रीना भी उत्तेजित हो गई थी।

"कभी तो मुझसे कहा होता रीना...मैं अपनी हर जीत तुम्हारे नाम कर देती।" लीना ने थोड़ा नरम होकर कहा।

"हा...हा...हा...! अपनी जीत मुझे देती या भीख ! अहसान करती, महान बनती और मुझे दयनीय महसूस कराती। अगर इतना ही शौक है महान बनने का तो मैं दे रही हूँ मौका तुम दोनों को...आज तक तुम मुझे हार देती आई हो। आज रवि दे रही हूँ मैं तुम्हे अपनी 'उतरन' के रूप में...उसे स्वीकार करके कर लो अपनी आने वाली ज़िंदगी की एक नई शुरूआत।" 

यह कह कर रीना वहाँ से चली गई।

रवि और लीना ने जो सपने देखे थे एक साथ, चूर-चूर हो गए थे ! अब उनके बीच थी एक अजीब सी खामोशी और रीना की 'उतरन'...

Sunday 22 October 2017

बादल

विशाल नभ में
विचरता बादल
ढूंढे है छोर...
जब ना मिले
तो 'व्याकुल' होकर
तके धरा की ओर...
कहीं पाता
बारिश की बाट
जोहता किसान...
तो कहीं
बाढ़ की विभिषिका
से जूझता इंसान...

कहीं दिखती वसुंधरा
हरी-भरी...
कहीं मीलों फैला
रेगिस्तान...
कहीं दिखते बच्चे
तैरते तरणताल में...
कहीं रोते-बिलखते
भूख से बेहाल से...
कहीं एक प्रेमी
विरह में आँसू बहाता...
कहीं किसी युगल को
एक-दूजे के प्यार में
सराबोर पाता...

भ्रम में बादल
स्वयं को पाता...
धरा के निमंत्रण को
ठुकरा नहीं पाता...
विचार मग्न हो
धरती पे आता...
आस बनकर
बरस जाता...
ज़मीन को
आसमां से मिलाता...

#व्याकुल

तुम चुप थी उस दिन

अज़नबी था 
जब तुमसे पहली बार मिला था...
बातों-मुलाकातों का दौर
फिर तुम संग बढ़ चला था...
तुमसे मिले बगैर
मेरा ना कोई दिन ढला था...
हाथ तुम्हारा थामे 
मैं हर एक कदम चला था...
तुम्हें संजोकर आँखों में
मेरा तो हर ख़्वाब पला था...
साथ हमेशा दोगी
यही तुमने हर दिन कहा था...
तुम चुप थी उस दिन
पर वो आँखों में क्या था...
बहने को था आतुर
पर अधरों में अटका था...
ख़त थमा कर हाथों में
मुझसे जैसे वक्त मुड़ा था...
तुम्हारी ज़ुल्फ़ों का आँचल
मुझ पर आखिरी बार उड़ा था...
टूटा था खुद में मैं पूरा
उम्र भर फिर ना जुड़ा था...

#व्याकुल

ज़िन्दगी

क्या प्राणवायु आपूर्ति
हुई थी बाधित
या यूँ ही शिशुओं
का दम घुटा था...
क्या रेलमार्ग
हो गए हैं शापित
या यात्रियों का
दिन बुरा था...
क्या लुप्त होती
जा रही संवेदना
या यूँ ही युवतियों का
स्त्रीत्व छिना था...
क्या सुरक्षा देश की
है सर्वोपरि
या यूँ ही सीमा पर शव
सैनिक का गिरा था...
'ज़िंदगी'...
तुम चुप थी उस दिन
पर वो आँखों में क्या था...
हारी थीं तुम स्वयं से
या फिर
मानवता से
विश्वास उठा था...।

#व्याकुल

Saturday 21 October 2017

तुम से तुम तक

'तुम'...
मैंने जब
पहली बार कहा था
तुम्हें कितना
सुखद लगा था...
पता नहीं क्यों
'आप' बेगाना
'तुम' अपना सा
लगता है...
तुम्हें भी तो
यही लगा था...
चंद मुलाकातों में
'तुम' मेरी हो गई थी
और मैं तुम्हारा...
तुमसे जुड़ी
हर बात मुझे
तब भी भाती थी
और आज भी...
तुम्हारी बातें
तुम्हारी आवाज़
तुम्हारी मुस्कान...
जानती हो क्यों
क्योंकि ये मुझे
अकेला नहीं
होने देतीं...
तब भी
साथ होती हैं
जब 'तुम'
संग नहीं होती...
सच कहूँ
'तुम' ने मुझे
सब कुछ दिया
मैं रिक्त था
मुझे 'पूर्ण' किया...
मैं अधूरा था
संपूर्ण किया...
मेरा यह
जीवन है
'तुम' से
'तुम' तक...

#व्याकुल

दीपावली

आओ मिल के लगाएँ पंक्तियाँ
हम उन दियों की, 
स्नेह-आशीष हों समेटे 
जो अपने प्रियों की, 
नहीं दरकार है हमें 
राजनैतिक जुमलुओं की, 
वैमनस्य के अंधेरे को करे दूर
लहर चले ऐसे जुगनुओं की, 
भूखे पेट में देने को निवाले 
बहे ना धार आंसुओं की, 
भेंट गरीबी के ना चढ़े 
नन्हीं आरजूओं की, 
प्रगति पथ पर बढ़ने में ना 
हो कमी रोशनियों की, 
तभी होगी संपन्न सबकी 
दीपावली खुशियों की |

#व्याकुल 

Sunday 26 March 2017

विश्व कविता दिवस

लेखनी जात-पात ना जाने
मानवता को सर्वोपरि माने,


थमी जिनके हाथ वे नहीं सयाने
वे तो बस हैं भाव के दीवाने,


कभी तो लिखने पर पाएँ ताने
कभी बन जाएँ उनके फ़साने,


ग़ज़ल सुने कोई दिल बहलाने
पढ़े कविता कोई मुस्कुराने,


कहानी बुनने के आए ज़माने
होठों पे गूंजेंगे अब नए तराने,


सृजनता के नए आयाम गर हों आजमाने
आओ थामें वो दामन जो है 'आज सिरहाने'

#विश्व कविता दिवस #२१ मार्च २०१७
#
व्याकुल